आज जब आफ़िस से घर आई तो अचानक नुकड़ के घर के बहार भीढ़ लगी हुई थी .पूछने पर
पता चला कि तमन्ना ने आत्म हत्या कर ली थी .मैं
सन्न रह गई मगर कहीं अंदर से मेरी आत्मा कह रही थी कि यह तो एक दिन होना ही था
.तमन्ना पिछले काफी दिनों से परेशान सी लगती थी
.कई बार पूछने की कोशिश भी की ,पर न जाने क्या सोच कर वो बता नहीं पाई और आज कि
घटना उसी का नतीजा था
पुलिस आई और उस की लाश को हस्पताल ले गई ...
तम्मन्ना जिसने खुद को झोंक दिया था ......सब कुछ सहा था ....सिर्फ इस लिए कि गोद में
बेटी थी .
बेटी कुछ बन जाये दो अक्षर पढ ले कही अच्छा घर मिल जायेगा आज सारी तम्मन्ना धरती पर
पड़ी थी किस काम आई. उस शराबी पति की
गन्दी गालियाँ ,वो मारना पीटना ,वो बदतमीजी से पेश आना ...फिर भी वो सब झेलती रही थी
,बेटी कि खातिर ....
फिर आज ऐसा क्या हो गया कि उसने इतना बड़ा कदम उठा लिया ....हाँ पिछले कुछ दिनों से
वो आफ़िस अच्छे कपडे पहन कर जाने लगी थी
अपने काम मैं उस को आनंद आता था चाहे उसका वो गन्दा पति कितना कुछ बोलता था उसके
चरित्र पर भी पर वो इतनी पाक दामन थी कि
लोग उसके नाम सुनते ही कसम उठाने को तैयार हो जाते थे
शाम को कम वाली बाई आई तो आँख खुली ,शायद सोचते सोचते सो गई होगी
"अम्मा" इसी नाम से पुकारती थी वो ....बोली देखा वहां पोलिस आई है कोने वाली के घर मैं
अच्छा चलो तुम अपना काम खत्म करो मुझे कहीं जाना है ......
कल भी उसका घर वाला पैसा लेने आया था बहुत गालियाँ दी ,मारा भी .....बाई भी कहाँ चुप
बैठने वाली थी .फिर बेटी बोली .....अब मेरा
दिमाग इस ओर चला ...आ इधर आ क्या हुआ था मैंने बाई को पास बैठा कर पुछा
होना क्या था बाप झगडा कर के गया ही था कि बेटी ने पैसे मांगे .वो मैंने सामान ले लिया
उत्तर था उसका .क्यूँ लिया मेरे पैसे थे क्यूँ खर्च किये
क्यूँ ....क्यूँ ......करते हुए बेटी ने माँ पर हाथ उठा दिया और घर से बहार चली गई
बचपन से लेकर कर आज बेटी की जवानी तक खुद को मिट्टी कि गुडिया बना कर खुद को जिया
उसने अपनी हर तम्मना को मार डाला इस बेटी
की खातिर और आज वो बेटी ही उसकी मौत का सिला बन गई !
कई दिन बीत गए .समाज के बनाये सब रस्मोरिवाज भी पूरे हो गए !
एक दिन मुझे कुछ याद आया , मैं उठी और उसकी रखी हुई पोटली उठाई और भारी क़दमों से
उस के घर कि ओर चल पड़ी जहाँ सब कुछ फिर से
पहले जैसा ही था पर नहीं थी तो वो ...जिसे इस घर से ,बेटी से बहुत प्यार था उसकी बेटी के
हाथ मैं रख दी ......इन हालत मैं भी उसने अपनी
औकात से बढ़ कर कुच्छ सामान बेटी कि शादी के किये बना रखा था
पर अब तो वो लिख गई थी कि
" मेरी मौत कि जिम्मेदार मैं खुद हूँ "
और मैं चुपचाप सोच में डूबी हुई कब घर पहुँच गयी , पता भी न चला
थोड़ी ही देर बीती थी कि बेटी मेरे घर आ गई --आप से सच कहूँगी मैंने अपनी माँ का दिल
दुखाया है इस कि जिम्मेदार मैं हूँ आप पुलिस को बुला
कर मुझे पकड़ा दो
"पगली सारी जिंदगी उस ने नौकरी करी खुद को गंदे लोभी लोगों से बचा कर तेरे बाप के ताने
सुने और आज वो सच में टूट गई अच्छा हुआ
....अब तुम पलना अपने पागल बाप को जिसे नशे मैं किसी का फर्क पता नहीं चलता !
अच्छा कुच्छ दिन आप के पास रह लूं घर का काम कर दूँगी कहते हुए वो अंदर चली गई
क्या इसे पता है कि माँ के जाने कि जिम्मेदार यह खुद है .......नहीं शयद कभी पता भी न
चलेगा .....क्यूंकि पत्र तो मेरे पास है
पत्र में उस ने लिखा था -दीदी जिस बेटी के लिए मैंने खुद को होम कर दिया वो भी अपने पापा
के नक्शेकदम पर चलने लग गई है .
अब मैं हार गयी हूँ अगर हो सके तो उस को समाज मैं एक अच्छी जगह देने कि जरूर कोशिश
करना ....तम्मन्ना "
नीचे तारीख़ डाली ही थी आज से तीन महीने पहले की !!!!!! नीरजा।। 23 -December
-2011